.

.

Showing posts with label हरिपुर धार. Show all posts
Showing posts with label हरिपुर धार. Show all posts

Sunday, February 5, 2023

Throwback back memories Part -2

    पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि मैं बर्फबारी के बीच अपने कमरे में अकेला रह गया और चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी 
          मैं घर के बाहर निकला और बर्फ को ही अपना परिवार मान कर बर्फ से खेलने लगा और इसमें मुझे मजा भी आने लगा , जिनके मकान में मैं रहता था उनका नाम था गुड्डू लाला , बड़े ही अच्छे और भले आदमी थे। मैंने बाहर बर्फ में जाकर अकेलापन दूर करने के लिए अपने जैसा खुश मिजाज बर्फ का बुत बनाया , जैसा कि आप देख ही रहें है । इस बुत के आगे मेरे नाम का पहला अक्षर M लिखा है । आपको में मैं अपना पूरा नाम भी बताऊंगा , पर अभी इसे छुपा ही रहने दें। 
         इस छोटे से बुत से मेरी तनहाई दूर नहीं हुई तो मैं बाहर खुले में आ गया और एक 10 फुट का snow man बना डाला । पूरे दिन बर्फबारी में फंस के इस तरह के काम किए । जो बर्फ की पहाड़ियां आप पीछे देख रहे है वहां पर मां bhangaini का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है और हरिपुर धार भी इधर ही है । इस पहाड़ी के नीचे एक बहुत ही सुन्दर गांव है । यहां की प्राकृतिक छटा आपके मन को मोह लेगी। 

Throwback Memories --- During my first posting

यह बात 2005 की है , जब मेरी पहली नियुक्ति हुई थी। वो भी हिमाचल के interior area में। पहाड़ों का जीवन कभी भी सरल नहीं रहा । हर एक दिन मुश्किल भरा होता है । अगले दिन क्या मुसीबत आ जाए , कोई पता नहीं । मुझे जिस चीज से समस्या होती थी , वह है एक दम बारिश का आना , बर्फबारी तो और ज्यादा समस्या लेकर आती है। 
          मैं आपको बारिश का एक किस्सा सुनाता हूं, मैं गाड़ी में अपने परिवार के साथ जा रहा था , और मेरा स्टेशन बस 1 km दूर था कि अचानक बारिश आ गई । मेरी  गाड़ी मोड़ पर बारिश में आई मिट्टी में फंस गई। मैंने सोचा कि गाड़ी को यहीं रहने दूं सुबह ले जाऊंगा । इतने में वहां एक लोकल व्यक्ति आया 
और बोला कि यहां से गाड़ी ले जाओ। यहां इस छोटे से नाले में कभी भी ज्यादा पानी आ जाता है ।उसने मेरे साथ मदद करके गाड़ी निकाल भी दी और स्टार्ट भी कर दी । मैं चुपचाप चला गया । अगले दिन मुझे पता चला कि जहां मैं गाड़ी छोड़ के आने वाला था , वहां की सड़क रात को हुई भारी बारिश में बह गई। मैंने मन ही मन उस अनजान आदमी का शुक्रिया किया , अगर मैं उसकी बात नहीं मानता तो आज मेरी गाड़ी नदी में होती। 
       अब एक किस्सा बर्फबारी का सुनाता हूं। जिस जगह मैंने कमरा लिया था , वहां कोई गांव नहीं था , बस सड़क के नजदीक दो चार दुकानें थीं , जो कि आप ऊपर दी गई पिक्चर में देख सकते हैं । मेरे कमरे के साथ एक और sir रहते थे जो की शिमला गए हुए थे , मैं बिल्कुल अकेला था । रात को भारी बर्फबारी हुई , जिसके कारण Sir भी नहीं आ पाए , बसें भी बंद , दुकानें भी बंद , दिन में भी कोई नहीं था , में अकेला लाइट भी नहीं थी। फिर मैंने सोचा कि कमरे में ठंड से ठिठुरते रहने से अच्छा है बाहर बर्फ में खेलें